विज्ञापन

"सुपवा बाजी दलीदर भागी", आयी जानल जाउ दरीदर खेदे अउरी सुप बजावे के कहानी एह रिपोर्ट में।

"सुपवा बाजी दलीदर भागी", आयी जानल जाउ दरीदर खेदे अउरी सुप बजावे के कहानी एह रिपोर्ट में।



 "सुपवा बाजी दलीदर भागी", आयी जानल जाउ दरीदर खेदे अउरी सुप बजावे के कहानी एह रिपोर्ट में।

अभी भी हमनी के देश कृषिप्रधान देश बा,पहिले त पूर्णरूपेण कृषिप्रधान रहल बा। हमनी के बहुत से त्योहार आ परंपरा कृषि आधारित बा।ओहि सब परंपरा में से एगो परंपरा बा दलीदर खेदल (दरिद्रता भगाना)।

 खेतन से खलिहान में आके फसल में से जब अनाज निकल जाला तब से लेके अनाज के चूल्हा पर पके से पहिले तक सुप/सूपा के महत्वपूर्ण भूमिका रहल बा।अनाजन के खलिहान/खरिहान  से लेके रसोई घर तक में सूपा से होके गुजरे के होत रहे या कुछ अभी भी बा ई स्थिति।अब मशीन सुपवा के काम बखूबी कर देत बाटे। त स्पष्ट बा कि पहिले केहू के भी घर सुपा के अधिक बजला के मतलब अधिक अनाज के होखे से या कहिं त अधिक सम्पन्न होखे से भी होत रहे। 

   संभवतः एहि आधार पर दिवाली के समय अतीत में कभी सुप बजा के धन के देवी  लक्ष्मी,आ धन के देवता कुबेर के बोलावे आ दलीदर के भगावे के परंपरा के शुरूआत कएल गएल।हालांकि आजकल के संपन्नता के सूपा से उ पहीले वाला घनिष्ट संबंध नईखे रह गएल ,तबो उ परंपरा कमोबेश आज भी जियता।



   कहीं -कहीं ई दलिदर खेदे के उत्सव लोग दीवाली के एक दिन पहिले त कहीं -कहीं लोग दीवाली के अगिला दिने मनावे ला।


ई पूरा रिपोर्ट पुरुआ के फेसबुक पेज के सौजन्य से

www.facebook.com/puruaa


vigyapn

Post a Comment

0 Comments