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ग़ाज़ीपुर : समस्त सांसारिक मोह माया से बचे ख़ातिर ईश्वर के भक्ति जरूरी- गंगापुत्र त्रिदंडी स्वामी जी।

ग़ाज़ीपुर : समस्त सांसारिक मोह माया से बचे ख़ातिर ईश्वर के भक्ति जरूरी- गंगापुत्र त्रिदंडी स्वामी जी।

महान संत परम पूज्य गंगापुत्र त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के चतुर्मास गाजीपुर जनपद के ऊंचाडीह स्थित नागेश्वर महादेव मंदिर में चल रहल बा। एह दौरान प्रतिदिन ईहाँ पर श्री स्वामी जी के मुखारबिंद से श्रद्धालु लोगन के श्रीमद भागवत कथा सुने के मिलता।

बीते दिन कथा में स्वामी जी बतावनी कि एक बार नारद जी ब्रम्हा के देखले तो प्रश्न कइले कि राउवा केकर ध्यान कर रहल बानी। रउवा ऊपर भी केहु अउरी बा का, अतना सुनते ही ब्रम्हा जी आनंद में भर गईनी, तु भगवान के याद दिलादीहल, हम स्वतंत्र करता नइखी प्रसंसा सब झूठ बा ,जवन हमारा अंदर गुण बा उ सब भगवान के ह, बड़ाई केकर होखेके चाहि भगवान के ,पर हमार भगवान स्वयं बतावत बाड़े परमात्मा बाड़े पर स्वयं श्रेय ना लेनी, नाही त हम श्रेय लेबे लाग जाइब, राम जी लंका विजय कई के आइले त का बोलले।

"ये सब सखा सुनहु मुनि मेरे,भए समर सागर बहू तेरे।।"

बंदर भालू मन में सोचे लगले ,राम जी  साभ श्रेय त हम ही लोगन के दे दिहले,बंदर कहले ई ठीक नइखन बोल रहल राम जी,एगो राक्षस पर बीस बंदर पड़ के मार दिहले त कौन सा बड़ बात हो गईल, बड़ बड़ अतिकाय, अकम्पन, नारंतक, देवांतक, मेघनाद, कुम्भकर्ण अइसन योद्धा जब अइले त बंदर भागे लगले, एह असुरन के त राम जी मारले। सभ श्रेय राम जी के बा, राम जी फेर, सारा श्रेय गुरु जी के दिहनी,

"गुरु वशिष्ठ कुल पूज्य हमारे, इनकी कृपा दनुज रण मारे।"

हमनी का स्वीकार कई लीजा त सभ दोष के खजाना अहंकार बा, ओह अहंकार से बच जाई।

ब्रम्हा जी कहले की तु हमरा भगवान के बारे में नइखा जानत एहीसे हमार झूठ बड़ाई करत बाड़ा। ई सूर्य,अग्नि, ग्रह,नक्षत्र,चंद्रमा, सब भगवान के प्रकाश से प्रकाशित होखेले, ओहि तरह करे करावे वाला श्री नारायण बाड़े, हम त उनकर सेवक बानी।

"तस्मै नमो भगवते वासुदेवाय धी मही।।"

"यन्मायया दुर्जयया मां ब्रुवंतिम जगद्गुरूम।।"

एहीसे जवन प्रसंसा करेके बा नारायण के कर। ओहीजे गंगापुत्र जी महाराज  कथा में आगे बतावत बाड़े कि हे परिक्षित इंद्रिय के निग्रहित कईल बड़ा कठिन बा, रउवा आंख बन्द कई के बैठी अउरी केहु पीछे खड़ा होखे पता चल जाला, केहु पीछे खड़ा बा,इंद्रि के अपेक्षा मन सुक्ष्म बा,जईसे गीता में अर्जुन भगवान से पूछले।

"चंचलम ही मन: कृष्णम", भगवान  एक वाक्य में कह दिहले, "अभ्यासे न तू कौंतेय वैरागे न च गृहयते।"

अब का कइल जाउ इंद्रिन के निग्रह कईल नइखे जा सकत, मन के निग्रह कईल नइखे जा सकत, चित के समाहित कईल नइखे जा सकत,बुद्धि भगवान में लगात नइखे, अब जीव करो का।

ब्रम्हा जी कहत बाड़े ,बस भगवान के हृदय में बईठाली, भगवान बईठीहे कईसे जईसे संसारियन के साथ रहेले संसार मन में बईठ गईल वईसे ही , भगवान अउरी भक्तो के साथ करत करत मन में भगवान बईठ जइहें, भगवान श्रवण मार्ग से हृदय में बईठेले, ब्रम्हा जी कहले हम भगवान के नाम,रूप,लीला धाम केआश्रय लिहनी अउरी भगवान हृदय में बईठ गइले, भगवान के माया से बचेके बा त भगवान के चरण मे चल जा। "माम एव ये प्रपद्यंते माया मेताम तरंतीते।"

एह मौका पर कृष्णानंद राय ,विजय बहादुर राय, अरुण राय, अजय राय ,सनत कुमार राय, सुमंत पांडे ,सुभाष पांडे, सत्यनारायण राय ,दिनेश राय ,प्रेम प्रकाश राय ,रजनीश राय, वीरेंद्र राय ,मार्कंडेय राय ,रोजगार सेवक, अभय लाल, प्रधान,शिवानंद यादव ,घर भरण वर्मा सहित ढेर सारा श्रद्धालु उपस्थित रहले।

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