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फिलिम समीक्षा: ‘जॉली एलएलबी 3’ – न्याय प्रणाली पर मनोरंजक लेकिन सटीक टिप्पणी।


फिलिम समीक्षा: ‘जॉली एलएलबी 3’ – न्याय प्रणाली पर मनोरंजक लेकिन सटीक टिप्पणी





रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐ (4/5)


बॉलीवुड के चर्चित कोर्टरूम ड्रामा सीरीज़ ‘जॉली एलएलबी’ के तिसरका कड़ी ‘जॉली एलएलबी 3’ एक बेर फेर से सामाजिक मुद्दा पर मनोरंजक लेकिन गंभीर दृष्टिकोण पेश करेला। सुभाष कपूर द्वारा निर्देशित एह फिलिम में दर्शक के एक तरफ कोर्ट के भीतर चल रहल नाटकीय घटनाक्रम देखे के मिलेला, त दुसरका ओर देश के न्याय प्रणाली आ आम आदमी के संघर्ष के सटीक चित्रण भी।


एह फिलिम के सबसे मजबूत पक्ष बा – ओकर संतुलित पटकथा आ दमदार अभिनय। अक्षय कुमार आ अरशद वारसी, दुनो एक दोसरा के खिलाफ कोर्ट में भिड़ते नजर आवत बाड़ें, लेकिन दर्शक के सहानुभूति कभी एक ओर त कभी दुसरी ओर झुकते देखल जा सकेला। सौरभ शुक्ला द्वारा निभावल ‘जज त्रिपाठी’ के किरदार अब ले फ्रेंचाइज़ी के पहचान बन चुकल बा – आ ई बारो ऊ आपन भूमिका में जान डाल देले बाड़ें।


निर्देशक सुभाष कपूर के निर्देशन में परिपक्वता साफ देखे के मिलेला। ऊ इंटरवल से पहिले हल्का-फुल्का अंदाज राखत बाड़ें, जबकि सेकेंड हाफ में मुद्दा पर एक मजबूत पकड़ बना लेत बाड़ें। ई संतुलन, आज के दौर में, बहुत कम फिलिम में देखे के मिलेला।


प्रमुख कलाकारों के प्रदर्शन:


  • अक्षय कुमार – एक जिम्मेदार वकील के रूप में सटीक प्रदर्शन, जेकर भूमिका सुपरस्टार से अधिक अभिनेता के मांग करेला।
  • अरशद वारसी – सहज अभिनय, खासकर क्लाइमैक्स में ऊ आपन अभिनय क्षमता के ऊँचाई पर देखावेलन।
  • सौरभ शुक्ला – ‘जज त्रिपाठी’ के किरदार में एक बार फेर से जान डाल देले।
  • राम कपूर आ गजराज राव – सहायक भूमिका में मजबूती से उपस्थिति दर्ज करावत बाड़ें।
  • सीमा विश्वास – छोट लेकिन प्रभावी किरदार, जे दिल पर गहराई से असर छोड़ेला।



हुमा कुरैशी आ अमृता राव के किरदार सीमित रहे, जे फिलिम के मुख्य प्रवाह में बहुत खास योगदान ना दे पावल।


तकनीकी पक्ष:


फिलिम के सिनेमैटोग्राफी सादी लेकिन प्रभावी बा। गाना-नाच के अभाव के बावजूद बैकग्राउंड स्कोर माहौल के अनुरूप ढालल गइल बा। कोर्टरूम ड्रामा के लिहाज से संवाद लेखन सटीक आ प्रभावशाली बा।


निष्कर्ष:


‘जॉली एलएलबी 3’ एगो एही किसिम के फिलिम ह, जवन मनोरंजन आ सामाजिक संदेश के एक साथ लय में पिरोके पेश करेला। ई फिलिम ना केवल हंसी-ठिठोली के मौका देला, बल्कि सोचवले पर भी मजबूर करेला। अगर रउआ गंभीर सिनेमा के शौकीन बानी, त ई फिलिम एक जरूरी अनुभव बन सकेला।




देखे लायक बा?

हां, जरूर। खासकर ओह लोग खातिर जे समाज, कानून आ सिनेमा के जोड़ के महसूस करे चाहेला।

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